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कविता

अंधकार का पहरा

श्यामसुंदर दुबे


उथला पानी
कुआँ है गहरा
सीढ़ी ऊपर
पाँव जमाए
अंधकार का बैठा पहरा।

रस्सी छोटी
घड़े में दरकन,
अड़बड़ रस्ता
पनघट फिसलन !
प्रजातंत्र की
इस संसद में
सब चेहरों पर
            एक ही चेहरा।

बड़का मेंढक
तल में बोला -
माईक गूँजे
अर्थ टटोला !
प्यासे कंठों को
केवल आश्वासन
सब मंचों का
            यही ककहरा।
 


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